गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है । Guru Nanak ki Drishti mein Brahma ka nivas kahan hai 

नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिंदी विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है”(Guru Nanak ki Drishti mein Brahma ka nivas kahan hai) का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं। 

गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है । Guru Nanak ki Drishti mein Brahma ka nivas kahan hai

प्रश्न: गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है । Guru Nanak ki Drishti mein Brahma ka nivas kahan hai

उत्तर –  गुरु नानक के अनुसार, ब्रह्म का निवास उस व्यक्ति में होता है जिसने इच्छाओं और सांसारिक बंधनों से खुद को मुक्त कर लिया हो। ऐसे व्यक्ति के भीतर ब्रह्म का साक्षात्कार संभव है जो काम, क्रोध, और ममता से पूरी तरह अलग हो चुका हो।

आज के पेपर में पूछे गए प्रश्न

Q. गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है

Q. मंगम्मा अपने बेटे-बहू से अलग क्यों हो गई

Q. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है

Q. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है

Q. श्रम विभाजन कैसे समाज की आवश्यकता है

Q. सेन साहब खोखा में कैसी संभावनाएं देखते थे

Q. हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया” इसकी सप्रसंग प्याख्या कीजिए

Q. अंबेडकर की दृष्टि में जातिप्रथा आर्थिक पहलू से भी हानिकारक है कैसे

Q. मंगम्मा ने माँजी की आदमी को वश में रखने के कौन-से गुर बताए

Q. राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा पद का सारांश अपने शब्दों में लिखें

दूसरा उतर 

गुरु नानक का मानना है कि ब्रह्म की अनुभूति उस हृदय में होती है जो दुनिया की मोह-माया से दूर होकर शुद्ध और शांत हो गया हो। वह व्यक्ति जो आत्मिक रूप से पवित्र होता है, उसमें ब्रह्म का निवास होता है।

तीसरा उतर 

गुरु नानक के अनुसार, जो व्यक्ति सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर देता है और आंतरिक शांति प्राप्त करता है, वही ब्रह्म की उपस्थिति महसूस करता है। ब्रह्म का वास उस मन में होता है जो मोह-माया और लोभ से मुक्त हो गया हो।

चौथा उतर 

गुरु नानक ने समझाया कि ब्रह्म का वास उस व्यक्ति के भीतर होता है जो अपनी इच्छाओं और लालच को त्यागकर आत्मा को स्वच्छ और शांत करता है। ऐसा व्यक्ति ब्रह्म को अपने हृदय में अनुभव कर सकता है।

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