अथर्ववेद में कितनी ऋषिकाएँ हैं । Atharvved mein kitni rishikayen Hain

नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 10 के संस्कृत विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “अथर्ववेद में कितनी ऋषिकाएँ हैं”(Atharvved mein kitni rishikayen Hain)का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं।

अथर्ववेद में कितनी ऋषिकाएँ हैं । Atharvved mein kitni rishikayen Hain

प्रश्न: अथर्ववेद में कितनी ऋषिकाएँ हैं । Atharvved mein kitni rishikayen Hain

उत्तर –

अथर्ववेद में पाँच प्रमुख ऋषिकाएँ हैं: घोषा, अपाला, लोपा, विश्ववारा, और वाक्। इनका योगदान वैदिक साहित्य में अमूल्य है। वेदों में ऋषिकाओं के मंत्र अद्वितीय माने जाते हैं, जिनका उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का प्रचार करना था।

आज के पेपर में पूछे गए प्रश्न

Q. मंत्रों के दर्शक कौन कौन थे

Q. अथर्ववेद में कितनी ऋषिकाएँ हैं

Q. मैत्रेयी कौन थी

Q. पाँच ऋषिकाओं के नाम लिखें

Q. प्रथम आलसी ने क्या कहा

Q. अलसकथा कहाँ से लिया गया है

Q. नीतिकार आलस को क्या मानते हैं

Q. शास्त्र संरक्षण में किसकी किसकी भूमिका है

Q. द्वितीय आलसी ने क्या कहा

Q. संस्कृत साहित्य में आधुनिक लेखिकाओं का वर्णन करें

Q. पाटलिपुत्र का वैभव कैसा था

Q. कौमुदी महोत्सव कब प्रचलित था

Q. मम माता’ पर सात पंक्तियों में अनुच्छेद लिखें

दूसरा उतर 

अथर्ववेद में पाँच महत्वपूर्ण ऋषिकाएँ मानी जाती हैं। इनका विशेष योगदान वैदिक ऋचाओं के निर्माण में रहा है। घोषा, अपाला, लोपा, विश्ववारा और वाक् प्रमुख रूप से अपनी विद्वता और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए विख्यात हैं। ये महिलाएँ समाज में सम्मानित और प्रेरणादायक मानी जाती थीं।

तीसरा उतर 

पाँच प्रमुख ऋषिकाएँ अथर्ववेद से जुड़ी हैं, जो घोषा, अपाला, लोपा, विश्ववारा, और वाक् हैं। उन्होंने वैदिक काल में समाज के प्रति अपना योगदान देकर स्त्री की भूमिका को सशक्त बनाया। इनका कार्य आध्यात्मिक विचारधारा और नैतिकता के विकास में अहम माना गया।

चौथा उतर 

अथर्ववेद की पाँच प्रसिद्ध ऋषिकाएँ घोषा, अपाला, लोपा, विश्ववारा और वाक् थीं। उन्होंने अपने ज्ञान और साधना से समाज को दिशा दी। उनके योगदान से वैदिक मंत्रों का महत्व बढ़ा और महिलाओं की विद्वता को मान्यता मिली। ये ऋषिकाएँ समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बनीं।

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