ऑस्टिन के प्रभुसता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Austin ke Prabhu Satta Siddhant ki aalochnatmak charcha Karen

नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 11 के राजनीति शास्त्र विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “ऑस्टिन के प्रभुसता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें”(Austin ke Prabhu Satta Siddhant ki aalochnatmak charcha Karen)का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं।

ऑस्टिन के प्रभुसता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Austin ke Prabhu Satta Siddhant ki aalochnatmak charcha Karen

प्रश्न: ऑस्टिन के प्रभुसता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Austin ke Prabhu Satta Siddhant ki aalochnatmak charcha Karen

उत्तर –

ऑस्टिन का सिद्धांत भाषा के उपयोग पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसमें भाषा को सामाजिक क्रियाओं के रूप में देखा जाता है। यह सिद्धांत ‘प्रभुसता’ के विचार पर आधारित है, जो दर्शाता है कि भाषा केवल संचार का साधन नहीं बल्कि कार्यों का भी माध्यम है। आलोचकों का कहना है कि इस दृष्टिकोण में भाषायी क्रियाओं की विविधता को पूरी तरह से नहीं शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक संदर्भों और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर एक ही भाषा की क्रिया के कई अर्थ हो सकते हैं। इस दृष्टिकोण ने भाषाशास्त्र में गहरा प्रभाव डाला है, लेकिन इसकी सीमाएँ भी स्पष्ट हैं क्योंकि यह सभी सामाजिक परिप्रेक्ष्यों को समाहित नहीं करता।

आज के पेपर में पूछे गए प्रश्न

Q. राजनीति विज्ञान की परंपरागत परिभाषा को स्पष्ट करें

Q. क्या राजनीति सत्ता का अध्ययन है

Q. राजनीति का अध्यन राष्ट्र से शुरू व राष्ट्र पर समाप्त होता है संक्षिप्त वर्णन करें

Q. उत्तर व्यवहारवादी क्रान्ति क्या है

Q. राज्य की उत्पत्ति के दैविक सिद्धांत की संक्षिप्त विवेचना करें

Q. नकारात्मक स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं

Q. वैध और वास्तविक प्रभुसता का क्या अर्थ है

Q. राजनीति विज्ञान की परम्परागत व आधुनिक परिभाषाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करें

Q. राजनीति विज्ञान के अध्ययन की व्यवहारवादी पद्धति की विशेषताओं पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें 

Q. राष्ट्र से आप क्या समझते हैं ? इसके तत्वों का वर्णन करें

Q. ऑस्टिन के प्रभुसता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें

Q. सम्प्रभुत्ता के बहुलवादी सिद्धान्त पर एक निबंध लिखें

दूसरा उतर 

ऑस्टिन के सिद्धांत ने भाषा की एक नई दृष्टि प्रस्तुत की, जिसमें वह इसे एक सक्रिय सामाजिक क्रिया मानते हैं। उन्होंने भाषाई क्रियाओं को ‘प्रभुसता’ के रूप में परिभाषित किया, जिससे यह दर्शाया कि भाषा केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं बल्कि कार्यों को भी पूरा करती है। हालांकि, इस दृष्टिकोण की आलोचना की गई है कि यह सिद्धांत सभी प्रकार की भाषायी क्रियाओं को पूरी तरह से नहीं समझाता है। महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि ऑस्टिन का सिद्धांत केवल वाक्यों की संरचना पर ध्यान देता है, परंतु यह उन सामाजिक संदर्भों को अनदेखा करता है जो भाषायी अर्थ को प्रभावित करते हैं। इसके बावजूद, यह सिद्धांत भाषा के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।

तीसरा उतर 

ऑस्टिन के सिद्धांत के अंतर्गत, भाषा केवल संवाद का एक माध्यम नहीं बल्कि सामाजिक क्रियाओं की प्रक्रिया भी है। ऑस्टिन ने भाषाई क्रियाओं को मुख्य रूप से ‘प्रभुसता’ के रूप में प्रस्तुत किया, जहां भाषायी क्रियाएं केवल बात करने का नहीं बल्कि कुछ करने का भी कार्य करती हैं। आलोचनात्मक दृष्टिकोण से, यह सिद्धांत पूरी तरह से इस बात को समाहित नहीं करता कि विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ कैसे भाषायी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक ही वाक्य एक सामाजिक परिप्रेक्ष्य के आधार पर विभिन्न अर्थ ले सकता है। इस दृष्टिकोण ने भाषाशास्त्र को एक नई दिशा दी, लेकिन इसे सार्वभौमिक मानक के रूप में लागू करना मुश्किल है क्योंकि यह विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में नहीं रखता।

चौथा उतर 

ऑस्टिन का सिद्धांत भाषा के उपयोग पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसमें भाषा को सामाजिक क्रियाओं के रूप में देखा जाता है। यह सिद्धांत ‘प्रभुसता’ के विचार पर आधारित है, जो दर्शाता है कि भाषा केवल संचार का साधन नहीं बल्कि कार्यों का भी माध्यम है। आलोचकों का कहना है कि इस दृष्टिकोण में भाषायी क्रियाओं की विविधता को पूरी तरह से नहीं शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक संदर्भों और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर एक ही भाषा की क्रिया के कई अर्थ हो सकते हैं। इस दृष्टिकोण ने भाषाशास्त्र में गहरा प्रभाव डाला है, लेकिन इसकी सीमाएँ भी स्पष्ट हैं क्योंकि यह सभी सामाजिक परिप्रेक्ष्यों को समाहित नहीं करता।

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