वर्ण-व्यवस्था एवं जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें । Vyavastha AVN jaati vyavastha ki utpati per Prakash dalen

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नमस्कार स्टूडेंट आज के इस आर्टिकल में बिहार बोर्ड कक्षा 12वीं के इतिहास विषय कि अगस्त 2024 मासिक परीक्षा में पूछा जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रश्न ‘वर्ण-व्यवस्था एवं जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें”Vyavastha AVN jaati vyavastha ki utpati per Prakash dalen) का जवाब दिया गया हैं। 

वर्ण-व्यवस्था एवं जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें । Vyavastha AVN jaati vyavastha ki utpati per Prakash dalen

प्रश्न: वर्ण-व्यवस्था एवं जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें । Vyavastha AVN jaati vyavastha ki utpati per Prakash dalen

उत्तर-  वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था भारतीय समाज की प्राचीन सामाजिक संरचनाएँ हैं जिनकी उत्पत्ति धार्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं के कारण हुई। 

वर्ण-व्यवस्था: की शुरुआत वेदकालीन समाज से मानी जाती है, जिसमें समाज को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। इन वर्गों का निर्माण समाज के विभिन्न कार्यों और जिम्मेदारियों के अनुसार हुआ। ब्राह्मणों को धार्मिक और शैक्षणिक कार्य सौंपे गए.

जाति-व्यवस्था: का उदय भी इसी काल से शुरू हुआ, जिसमें समाज को जन्म के आधार पर विभाजित किया गया। जाति-व्यवस्था ने सामाजिक गतिशीलता को रोकते हुए विभिन्न जातियों को ऊँच-नीच में बांटा। यह व्यवस्था समाज में सामाजिक असमानता और भेदभाव को बढ़ावा देती रही।

समाज के विकास और विविधता को देखते हुए इन व्यवस्थाओं में कई परिवर्तन हुए हैं। आधुनिक समाज में इनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जाते हैं.

दूसरा उतर 

वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था भारतीय समाज के प्राचीन सामाजिक ढांचे के दो प्रमुख तत्व हैं। इनकी उत्पत्ति का आधार धार्मिक और सामाजिक मान्यताएँ थीं जो समय के साथ विकसित होती गईं।

वर्ण-व्यवस्था: का आरंभ वेदों के काल में हुआ था। इसका मूल उद्देश्य समाज को चार प्रमुख वर्गों में विभाजित करना था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक वर्ग को विशिष्ट कार्यों और दायित्वों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ब्राह्मणों को धार्मिक और शिक्षाप्रद कार्यों का जिम्मा सौंपा गया।

जाति-व्यवस्था: वर्ण-व्यवस्था से भी जटिल थी और समाज में विभिन्न जातियों का निर्माण करती थी। जातियाँ समय के साथ संप्रदायों, परंपराओं और सामाजिक मान्यताओं के आधार पर बनती गईं। जाति-व्यवस्था ने समाज में गहरी सामाजिक और आर्थिक विभाजन को जन्म दिया। 

इन दोनों व्यवस्थाओं की उत्पत्ति और विकास भारतीय समाज में जटिल सामाजिक और धार्मिक संरचनाओं को दर्शाते हैं। इनकी जड़ें प्राचीन संस्कृतियों और धार्मिक विश्वासों में हैं.

तीसरा उतर 

वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था भारतीय समाज की प्राचीन सामाजिक संरचनाएँ हैं जिनका इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। वर्ण-व्यवस्था का आधार वेदों में मिलता है, जिसमें समाज को चार मुख्य वर्गों में बांटा गया था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। यह व्यवस्था जाति की बजाय कर्म और गुण पर आधारित थी.

जाति-व्यवस्था का उदय समय के साथ वर्ण-व्यवस्था से हुआ, जब विभिन्न पेशेवर और सामाजिक समूहों ने विशिष्ट पहचान प्राप्त की। इससे समाज में जातियों का निर्माण हुआ, और यह व्यवस्था मुख्यतः जन्म आधारित हो गई। जाति-व्यवस्था ने समाज में विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक भेदभाव और असमानता को बढ़ावा दिया।

वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था का प्रभाव भारतीय समाज पर गहरा पड़ा। जहां वर्ण-व्यवस्था ने कर्म और गुण पर आधारित वर्गीकरण किया, वहीं जाति-व्यवस्था ने जन्म और सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को जन्म दिया। समय के साथ, जाति-व्यवस्था ने समाज में स्थायी सामाजिक विभाजन को मजबूत किया।

समाज सुधारक और राजनीतिक नेताओं ने इस असमानता को खत्म करने के लिए विभिन्न प्रयास किए, लेकिन जाति-व्यवस्था की जड़ें समाज में गहरी हैं और इसका प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।

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