प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ । संदर्भ-प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए 

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नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 9 के Hindi विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “महादेवीप्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ । संदर्भ-प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए” (Premi dhundhat mein firo Premi Milan koi Premi ko Premi mile sab Vishva Amrit hoy) का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं।

प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ । संदर्भ-प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए । Premi dhundhat mein firo Premi Milan koi Premi ko Premi mile sab Vishva Amrit hoy

Q: प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ । संदर्भ-प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए ।  Premi dhundhat mein firo Premi Milan koi Premi ko Premi mile sab Vishva Amrit hoy

Answer – 

संदर्भ : यह दोहा कबीर जी सखियाँ से लिया गया है।

प्रसंग : दोहे में कबीर जी ने ईश्वर को सच्चे से प्राप्त करने के बारे में बताया है। जीवात्मा और परमात्मा के मिलने से उत्पन्न होने वाले भाव को समझाया है।

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में अपने प्रेमी की खोज में निकले हैं। वे बताते हैं कि सच्चे प्रेमी को ढूँढना अत्यंत कठिन है। यहाँ प्रेमी का तात्पर्य ईश्वर या सच्चे भक्त से है। संसार में बहुत लोग हैं, पर सच्चे प्रेमी दुर्लभ होते हैं। जब किसी सच्चे भक्त को सच्चा प्रेमी मिलता है, तो संसार की सभी परेशानियाँ और दुख समाप्त हो जाते हैं। जीवन में केवल खुशी और आनंद बचता है। यह दोहा सच्ची भक्ति और प्रेम के अनुभव को दर्शाता है, जिसमें प्रेम संसार की सभी कठिनाइयों को मिटा सकता है।

दूसरा उतर 

संदर्भ : यह दोहा कबीर जी सखियाँ से लिया गया है।

प्रसंग : दोहे में कबीर जी ने ईश्वर को सच्चे से प्राप्त करने के बारे में बताया है। जीवात्मा और परमात्मा के मिलने से उत्पन्न होने वाले भाव को समझाया है।

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, सच्चे भक्त की खोज करना आसान नहीं है। वे कहते हैं कि उन्होंने जीवनभर सच्चे प्रेमी को ढूँढा, परंतु उन्हें कोई नहीं मिला। इस दोहे में कबीर जी मानते हैं कि जब सच्चा भक्त किसी सच्चे प्रेमी से मिलता है, तो जीवन की सभी विषमताएँ समाप्त हो जाती हैं। इस दुनिया में जितनी भी कठिनाइयाँ और दुःख हैं, वे सब प्रेम के साथ समाप्त हो जाते हैं। कबीर जी यहाँ प्रेम की महिमा का बखान कर रहे हैं, जो जीवन को एक नए स्तर पर ले जाती है, जहाँ केवल आनंद और शांति होती है।

तीसरा उतर 

संदर्भ : यह दोहा कबीर जी सखियाँ से लिया गया है।

प्रसंग : दोहे में कबीर जी ने ईश्वर को सच्चे से प्राप्त करने के बारे में बताया है। जीवात्मा और परमात्मा के मिलने से उत्पन्न होने वाले भाव को समझाया है।

व्याख्या: कबीर जी का यह दोहा सच्चे प्रेम और भक्ति की गहराई को समझाता है। वे कहते हैं कि सच्चे प्रेमी या भक्त को ढूँढना बेहद कठिन है, क्योंकि सच्चा प्रेम और भक्ति दुर्लभ हैं। जब कोई सच्चे भक्त से मिलता है, तो संसार की सारी परेशानियाँ और विषमताएँ समाप्त हो जाती हैं। जीवन में जो कुछ भी कड़वा था, वह सब मीठा हो जाता है। यह दोहा प्रेम के उस रूप को दर्शाता है, जो जीवन में हर विषम परिस्थिति को भी मिठास में बदलने की शक्ति रखता है, और भक्त को सुख, शांति और संतोष प्राप्त होता है।

चौथा उतर 

संदर्भ : यह दोहा कबीर जी सखियाँ से लिया गया है।

प्रसंग : दोहे में कबीर जी ने ईश्वर को सच्चे से प्राप्त करने के बारे में बताया है। जीवात्मा और परमात्मा के मिलने से उत्पन्न होने वाले भाव को समझाया है।

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने सच्चे प्रेमी की खोज को व्यक्त किया है। वे बताते हैं कि सच्चा प्रेमी मिलना बहुत मुश्किल है, क्योंकि सच्चा प्रेम ही जीवन में सब कुछ बदल देता है। यहाँ प्रेम का अर्थ ईश्वर की भक्ति से है। जब सच्चा भक्त ईश्वर से मिलता है, तो जीवन की सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं। इस संसार में जो भी कड़वा है, वह प्रेम के साथ अमृत बन जाता है। कबीर जी इस दोहे के माध्यम से प्रेम की उस अनुभूति को प्रकट कर रहे हैं, जो जीवन को सुखमय और आनंदमय बना देती है।

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