नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिंदी विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “लेखक भीमराव अंबेडकर की दृष्टि में इस युग में विडम्बना की वात क्या है”(lekhak bheemrav Ambedkar ki Drishti mein is Yug mein vidambna ki vaat kya hai) का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं।
लेखक भीमराव अंबेडकर की दृष्टि में इस युग में विडम्बना की वात क्या है । lekhak bheemrav Ambedkar ki Drishti mein is Yug mein vidambna ki vaat kya hai
प्रश्न: लेखक भीमराव अंबेडकर की दृष्टि में इस युग में विडम्बना की वात क्या है । lekhak bheemrav Ambedkar ki Drishti mein is Yug mein vidambna ki vaat kya hai
उत्तर – बाबा साहेब अंबेडकर के अनुसार, जाति व्यवस्था और श्रम विभाजन आधुनिक समाज में विडंबना पैदा करते हैं। श्रम विभाजन का यह रूप सामाजिक भेदभाव और विभाजन को बढ़ावा देता है, जो समाज में असमानता का कारण बनता है।
आज के पेपर में पूछे गए प्रश्न
Q. गुरु नानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है
Q. मंगम्मा अपने बेटे-बहू से अलग क्यों हो गई
Q. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है
Q. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है
Q. श्रम विभाजन कैसे समाज की आवश्यकता है
Q. सेन साहब खोखा में कैसी संभावनाएं देखते थे
Q. हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया” इसकी सप्रसंग प्याख्या कीजिए
Q. अंबेडकर की दृष्टि में जातिप्रथा आर्थिक पहलू से भी हानिकारक है कैसे
Q. मंगम्मा ने माँजी की आदमी को वश में रखने के कौन-से गुर बताए
Q. राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा पद का सारांश अपने शब्दों में लिखें
दूसरा उतर
बाबा साहेब अंबेडकर के विचार से, जाति व्यवस्था समाज में इंसानियत के मूल्यों के खिलाफ है। यह व्यवस्था मनुष्य को उसके जन्म के आधार पर श्रमिकों के रूप में बांटती है, जो अन्यायपूर्ण है। इसके चलते समाज में न केवल असमानता बढ़ती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति अपने हुनर और क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पाता।
तीसरा उतर
अंबेडकर मानते थे कि जाति-आधारित श्रम विभाजन मानवता के खिलाफ है। उनका मानना था कि श्रम और कार्यों का बंटवारा इंसान की क्षमताओं और उसकी इच्छा के आधार पर होना चाहिए, न कि उसके जन्म पर। जातिवाद से उत्पन्न भेदभाव और असमानता समाज को कमजोर बनाते हैं और लोगों को उनकी क्षमताओं से वंचित करते हैं।
चौथा उतर
लेखक भीमराव अंबेडकर का मानना था कि जाति व्यवस्था समाज में असमानता और विभाजन को बढ़ावा देती है। उनके अनुसार, श्रम का बंटवारा अगर जाति के आधार पर किया जाता है, तो यह समाज की प्रगति में बाधक बनता है। उन्होंने जाति को एक ऐसी व्यवस्था बताया जो मानवता के आदर्शों के खिलाफ जाती है और समाज में एकता की जगह टकराव लाती है।