भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Bharat ke loktantra mein Loksabha ki bhumika ki aalochnatmak vyakhya Karen

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नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 12 के राजनीति शास्त्र विषय के सितंबर 2024 के मंथली एग्जाम में पूछा गया अति महत्वपूर्ण प्रश्न “भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या करें”(Bharat ke loktantra mein Loksabha ki bhumika ki aalochnatmak vyakhya Karen) का उत्तर दिया गया है। इस पोस्ट में इस प्रश्न के तीन से चार उतर दिए गए हैं। और तीनों उत्तर बिल्कुल सही है। आप इन तीनों उत्तरों में से किसी भी उत्तर को अपने एग्जाम में लिख सकते हैं।

भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Bharat ke loktantra mein Loksabha ki bhumika ki aalochnatmak vyakhya Karen

प्रश्न: भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या करें । Bharat ke loktantra mein Loksabha ki bhumika ki aalochnatmak vyakhya Karen

उत्तर –

भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या

1. **सदन की जिम्मेदारी**: लोकसभा का प्रमुख कार्य देश के कानूनों को पारित करना है। यह विधायी प्रक्रिया को जनता के हितों के अनुरूप संचालित करता है।

2. **नीतियों का आकलन**: यहाँ सरकारी नीतियों की समीक्षा होती है, जो शासन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

3. **जनप्रतिनिधित्व**: इस सदन के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं, जो जनता की समस्याओं को संसद में उठाते हैं।

4. **स्वतंत्रता का हनन**: कुछ आलोचक मानते हैं कि कई बार दलगत राजनीति से प्रभावित होकर लोकसभा के सदस्य स्वतंत्र विचार व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं।

5. **भाषण और बहस**: सदन में मुद्दों पर बहस होती है, लेकिन कई बार ये बहसें तर्कसंगत दिशा से भटक जाती हैं।

6. **रूकावटों का सामना**: संसद में अक्सर कार्यवाही रुकावट का सामना करती है, जिससे आवश्यक कामकाज में देरी होती है।

उत्तर 2

भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या

1. **प्रतिनिधित्व**: लोकसभा के सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका कार्य है जनता की आवाज को संसद तक पहुंचाना।

2. **चर्चा**: सदस्यों की भूमिका होती है कि वे राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों पर खुले मन से बहस करें और समाधान सुझाएं।

3. **प्रभावी भागीदारी**: कई बार सदस्यों का पूर्ण योगदान नहीं मिलता, जिससे निर्णयों पर असर पड़ता है।

4. **संविधान की शक्ति**: लोकसभा संविधान के दायरे में रहकर कार्य करती है, लेकिन राजनीति कभी-कभी संवैधानिक मूल्यों को कमजोर कर देती है।

5. **स्वायत्तता की कमी**: सदस्य कभी-कभी पार्टी नेतृत्व के निर्देशों पर चलते हैं, जिससे स्वायत्तता कम हो जाती है।

6. **विधायी प्रक्रिया**: सदस्यों का दायित्व होता है कानून निर्माण की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाना, जिसमें कभी-कभी देरी और जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।

उत्तर 3 

भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या

1. **जवाबदेही का अभाव**: लोकसभा के सदस्य को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, लेकिन कई बार व्यक्तिगत स्वार्थ प्राथमिक हो जाता है।

2. **सार्वजनिक हित**: संसद में लिए जाने वाले निर्णयों का जनता के हित में होना आवश्यक होता है, परंतु कुछ निर्णय व्यक्तिगत या दलगत लाभ के लिए होते हैं।

3. **खर्चों की जांच**: लोकसभा के माध्यम से राष्ट्रीय बजट का अनुमोदन होता है, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव कई बार देखा जाता है।

4. **कार्यवाही की निगरानी**: लोकसभा की कार्यवाही का जनता द्वारा समीक्षा होना आवश्यक है, लेकिन कई बार इसमें रोड़ा आता है।

5. **रुचि की कमी**: जनता के मुद्दों पर बहस के दौरान कुछ सदस्यों की उदासीनता साफ दिखाई देती है।

6. **मीडिया का प्रभाव**: लोकसभा की कार्यवाही पर मीडिया का बड़ा प्रभाव रहता है, जो सार्वजनिक राय को प्रभावित कर सकता है। 

भारत के लोकतंत्र में लोकसभा की भूमिका की आलोचनात्मक व्याख्या

उत्तर 4

1. **लोकतंत्र की मजबूती**: लोकसभा भारतीय लोकतंत्र का सबसे प्रमुख स्तंभ है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है।

2. **संसदीय प्रणाली**: यह सदन संसदीय प्रणाली का केंद्र बिंदु है, जहाँ कानून निर्माण होता है और नीति-निर्माण की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

3. **विरोध की स्वतंत्रता**: हालांकि विरोध का अधिकार यहाँ सुरक्षित है, लेकिन कभी-कभी इसकी अति से लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित होती है।

4. **जनमत का स्थान**: लोकसभा जनता के विचारों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन कई बार राजनीतिक दलों का वर्चस्व इसे प्रभावित कर देता है।

5. **संविधान के अनुरूप कार्य**: लोकसभा संविधान के नियमों के तहत काम करती है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप इसे कमजोर कर सकता है।

6. **कानून निर्माण में चुनौतियां**: कानून पारित करने की प्रक्रिया लंबी होती है, जिससे आवश्यक कानूनों को बनाने में विलंब होता है।

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